कहानी है एक तस्वीर के बनने की। ऐसी तस्वीर जो बेहद भावुक है। इतना कि बयां न हो सके। दिन था रविवार, तारीख 19 अप्रैल और जगह इंदौर का एक श्मशान। देवेंद्र चंद्रवंशी का अंतिम संस्कार होने को था। देवेंद्र पुलिस अधिकारी थे। कोरोना कीजंग में शहीद हो गए। भास्कर के फोटो जर्नलिस्ट संदीप वहां थे जहां ये सब घट रहा था। हिम्मत का काम था ये तस्वीर लेना भी। वही बता रहे अपनी बात...
"रविवार सुबह की बात है। मुझे ऑफिस से एक रिपोर्टर का फोन आया। उन्हें पता चला था कि टीआई देवेंद्र चंद्रवंशी का शव अरबिंदो अस्पताल से रामबाग मुक्तिधाम लेकर आ रहे हैं। मैं जब वहां पहुंचा तो शव मुक्तिधाम के भीतर ले जाया जा चुका था।
देवेंद्र चंद्रवंशी की पत्नी, दोनों बेटियों और बाकी परिवार वालों को गेट पर पीपीई किट पहनाई गई और फिर उन्हें मुक्तिधाम में ले जाया गया। अंदर सलामी देने खड़े पुलिस वालों ने भी वही पीपीई किट पहन रखी थी।
वहां बाहर कुछ मीडियावाले खड़े थे। मैंने जब पूछा कि अंदर नहीं गए? तो उनका जवाब था- तू ही जा। मैं ये सुनकर कुछ देर के लिए ठिठक सा गया। फिर सोचा मुझे हिम्मत नहीं हारना चाहिए। तभी याद आया एक पीपीई किट मेरी गाड़ी में रखी है। मैं किट पहन ही रहा था की अंदर से पुलिस के बिगुल की आवाज आई। मैं दौड़ते हुए अंदर गया। उस समय मेरे एक पैर में ही प्लास्टिक वाला मौजा था।
मैं जब वहां दौड़कर पहुंचा तो पता ही नहीं था कि मेरे ठीक पीछे बॉडी रखी हुई है। बस तीन फीट दूर था मैं। मैं तुरंत वहां से हटा। पीछे भोलेनाथ की तस्वीर थी और आगे देवेंद्र चंद्रवंशी की डेडबॉडी। तभी गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। सलामी देते हुए फायर किए गए, धुन बजी, अधिकारी चक्र लेकर आने लगे। सभी ने पीपीई किट पहन रखी थी।
परिवार वाले वहीं बनी कुर्सियों पर बैठे थे। और देवेंद्र चंदवंशी की पत्नी वहीं खड़े-खड़े रो रही थीं। वहां उनकी दोनों बेटियां भी थीं। परिवार के दो लोग पत्नी को पकड़कर उस तस्वीर तक ले आए जो उनके शव से काफी दूर रखी गई थी। वे कुछ देर तक शव की ओर ताकती रहीं फिर तस्वीर को छूते हुए फूट-फूटकर रोने लगीं। शव के पास एक पुलिसवाला पहले से खड़ा था। शायद इस एहतियात के लिए की उनकी पत्नी, बेटी शव के पास आने लगे तो उन्हें रोक दें।
पत्नी के बाद तस्वीर के पास दोनों बेटियां आईं। एक बेटी पिता के शव को काफी देर तक देखती रही। फिर उसने सैल्यूट किया। एक बुजुर्ग श्रद्धांजलि देते हुए बेहोश होकर गिर गए। शायद वह उनके पिता होंगे। लेकिन पीपीई किट में किसी को भी पहचानना संभव नहीं था, न ही मुझमें पूछने की हिम्मत थी। मैं उन लोगों से 100 फीट दूर खड़ा था, वहां से बस रोने की आवाज आ रही थी।
टू स्टार और थ्री स्टार ऑफिसर भी रो रहे थे। फिर वही पुलिसवाले उन्हें अंदर गैस वाले शवदाह गृह तक ले गए। वहां जाने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाया और शायद वे लोग मुझे जाने भी नहीं देते।
आखिर में उस तस्वीर को ही सैल्यूट कर मैं बाहर आ गया। मैं पूरा पसीने में था, किट को फाड़कर डस्टबिन में डाला। तभी देखा एक अधिकारी देवेंद्र चंद्रवंशी की तस्वीर लेकर बाहर आ रहे थे। परिवार और बाकी लोग भी आ गए। सभी ने किट फाड़ी और फिर उसमें आग लगा दी।"
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