लॉकडाउन ने बिहार के लीची किसानों की चिंता बढ़ा दी है। यहां पेड़ों पर लीची तो खूब लगी है, लेकिन इनके खरीदार गायब हैं। बिहार में व्यापारी हर साल मार्च के आखिरी हफ्ते या अप्रैल के शुरुआत में लीची खरीदने के लिए इनके बागों में घूमना शुरू कर देते हैं। वे लीची के पेड़ों पर लगे मंजर को देखकर दाम तय करते हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से व्यापारी इस बार लीची नहीं खरीद रहे हैं।
लीची की खेती ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक और उत्तराखंड में होती है। देश में कुल 56 हजार स्क्वायर फीट में इसकी खेती होती है। इसमें बिहार का हिस्सा 36 हजार स्क्वायर फीट है। यहां सबसे ज्यादा लीची मुजफ्फरपुर में ही होती है।
जिन किसानों का व्यापारियों से करार खत्म, उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी
लीची किसान राहुल कुमार बताते हैं कि जिले के किसान व्यापारियों से पांच साल या दस साल का अनुबंध कर लेते हैं। वे पांच साल का पूरा पैसा ले लेते हैं। उन्हें तो लॉकडाउन से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन, कई ऐसे किसान हैं जो एक या दो साल के लिए ही अनुबंध करते हैं। कई ऐसे भी किसान हैं, जिनका पांच साल या दस साल का अनुबंध पूरा हो गया है। इन किसानों को इस बार बड़ा नुकसान हो रहा है।
बिहार में लीची का कारोबार एक हजार करोड़ का, इसमें मुजफ्फरपुर का हिस्सा 700 करोड़ है
लीची का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करने वाले केएन ठाकुर बताते हैं कि हर साल लीची से करीब 700 करोड़ का कारोबार सिर्फ मुजफ्फरपुर में होता है। बिहार के दूसरे जिले को भी मिला दिया जाए तो आंकड़ा एक हजार करोड़ पार कर जाता है। मुजफ्फरपुर की शाही लीची इतनी फेमस है कि बेगूसराय, समस्तीपुर, मोतिहारी और वैशाली के किसान भी मुजफ्फरपुर के लीची के नाम से अपना माल बेचते हैं और उन्हें इससे अच्छी आमदनी भी हो जाती है।
शुगर फैक्ट्रियां बंद हुईं तो किसानों ने लीची की खेती पर ध्यान देना शुरू किया
मुजफ्फरपुर के सबसे बड़े लीची किसान भोलेनाथ झा बताते हैं कि 70 और 80 के दशक में शुगर फैक्ट्रियां बंद हो रही थी। जब गन्ना कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ तब किसानों ने लीची की खेती पर ध्यान दिया। 90 के दशक से ही मुजफ्फरपुर का शाही लीची पूरी दुनिया में जाने लगा। मुजफ्फरपुर से सैकड़ों टन लीची यूरोप और अरब देशों में भेजी जाती है।
किसानों की तरह ही लीची व्यापारियों को भी बड़ा नुकसान
नेट ग्रीन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के एमडी अनुज कुमार बताते हैं कि हम लोग हर साल मार्च के महीने में ही किसानों से रेट तय करके एडवांस दे देते हैं। अप्रैल के पहले या दूसरे सप्ताह तक हमारे पास देशभर से लीची की डिमांड का डेटा आ जाता है लेकिन, अभी तक हमारे पास कहीं से ऑर्डर नहीं आया है। हालांकि, हमारी टीम लीची के पैकेजिंग के लिए कार्टून बॉक्स तैयार कर रही है।
बिग बाजार, रिलायंस जैसी कंपनी के साथ हमारा टाईअप है। हम मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, पंजाब, चंडीगढ़ और चेन्नई में लीची भेजते हैं। अनुज ने बताया कि लीची का कारोबार करीब एक महीने तक चलता है। हमारी कंपनी हर दिन 25-30 लाख रुपए की बिक्री करती है। हम विदेशों में भी माल भेजते हैं लेकिन इस बार यह भी मुश्किल लग रहा है।
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