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Sunday, April 12, 2020

कोरोना के इलाज के लिए मलेरिया की दवा की मांग बढ़ी, भारत इसका सबसे बड़ा सप्लायर, हर महीने बना सकता है 30 करोड़ टैबलेट्स

दुनिया कोरोनावायरस संकट से जूझ रही है। कोराेना के खिलाफ कोई कारगर दवा अभी तक नहीं है।ऐसे में सिर्फ एक दवा हाइड्रोक्सी-क्लोरो-क्विन (एचसीक्यू) की सबसे ज्यादा चर्चा है। केंद्र सरकार ने 25 मार्च को इसके निर्यात पर बैन लगा दिया था। बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति की मांग पर बैन हटाया गया। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, दुनिया के कई देश भारत से इस दवा की मांग कर रहे हैं। यह दवा कोरोना की नहीं, बल्कि मलेरिया की है। शुरुआती स्तर पर अभी तक कोरोना के संक्रमण और लक्षणों को कम करने में इसे सबसे ज्यादा प्रभावी माना जा रहा है। हालांकि,शनिवार को देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि यह दवा किसको और कितनी देनी है, इस बारे में वह कोई अनुशंसा नहीं करता है। साथ ही यह भी कहा कि बिना डॉक्टर की सलाह के यह दवाई न ली जाए।

पिछले 76 साल से भारत में एंटी मलेरिया और रूमेटाइड अर्थराइटिस के उपचार में उपयोग की जा रही इस दवाई की अचानक से बाजार में किल्लत हो गई है। सबसे पहले बड़े पैमाने पर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इस दवा का उपयोग हुआ था। यह टैबलेट मूल रूप से इम्यून पॉवर को बढ़ाती है। भारत ने 13 देशों के लिए अपना पहला कंसाइनमेंट भेज भी दिया है। इनमें अमेरिका, स्पेन, जर्मनी आदि शामिल हैं। देश में 80% एचसीक्यू इप्का और जायडस-कैडिला कंपनियां बनाती है। इप्का ने एक मीडिया ग्रुप को बताया कि एचसीक्यू के कुल उत्पादन का 10% इस्तेमाल ही देश में होता है। बाकी 90% 50 देशों को एक्सपोर्ट कर दिया जाता है। अमेरिका नेभारत से इसकी 48 लाख टैबलेट्स मांगी हैं। हालांकि, भारत ने35 लाख टैबलेट्स भेजने को ही अनुमति दी है।

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा के बारे में वो सबकुछ जो आपको जानना चाहिए:

क्या है एचसीक्यू?
एचसीक्यू एंटी मलेरिया ड्रग है। यह क्लोरोक्विन का एक रूप है। क्लोरोक्विन का उपयोग मलेरिया के इलाज में होता है। एचसीक्यू का उपयोग मलेरिया के अलावा रूमेटाइड ऑर्थराइटिस जैसी बीमारियों में होता है। यह इम्युनिटी बढ़ाती है। 1934 में एचसीक्यू का अविष्कार किया हुआ था।

क्यों चर्चा में है भारत?
अमेरिका, ब्राजील सहित दुनिया के कई देश इस समय इस दवा के लिए भारत पर निर्भर हैं। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाली कुल एचसीक्यू टैबलेट्स का 70% उत्पादन भारत में ही किया जाता है। भारत इस दवा का बड़ा सप्लायर है।

कैसे विश्व निर्भर?
दरअसल, मच्छरों की समस्या के चलते भारत में इसका उत्पादन ज्यादा होता है। चूंकि, अमेरिका जैसे विकसित देशों में मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का प्रकोप कम है। ऐसे में वहां इस दवा का उत्पादन नहीं होता।

कितनी क्षमता हमारी?
केंद्र के मुताबिक भारत वर्तमान में प्रति माह 20 से 30 करोड़ टैबलेट बना सकता है। फिलहाल हम क्षमता का महज 50% ही उत्पादन कर पा रहे हैं। लॉकडाउन से असर पड़ा है। फार्मास्यूटिकल मार्केट रिसर्च कंपनी एआईओसीडी अवेक्स फार्मा टेक के अनुसार, फरवरी 2020 तक अंतिम 12 माह में एचसीक्यू का मार्केट साइज 152.80 करोड़ रु. था।

इम्यून मॉडिलेशन करती है, इसलिए हो सकती है प्रभावी

नई दिल्ली स्थितअपोलो हॉस्पिटल के डॉ यश गुलाटी ने बताया कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का मुख्यत: उपयोग रूमेटाइड ऑर्थराइटिस में किया जाता है, जो कि एक इम्यून डिसीज है। यह दवा इम्यून मॉडिलेशन का काम करती है। अब चूंकि कोविड-19 भी इम्यून से ही जुड़ी हुई बीमारी है। ऐसे में हाे सकता है कि यह लाभकारी हो। हालांकि, अभी तक इसका कोई प्रूफ नहीं है।लेकिन, लक्षणों के आधार पर यह सही लगता है।

उन्होंने बताया किएक बात यह भी है कि यह दवा दूसरी दवा के साथ काम्बिनेशन में दी जाती है। कोविड-19 में भी इसे एजिथ्रो माइसिन के साथ कई जगह लिया जा रहा है। एक और महत्वपूर्ण बात यह कि हार्ट पेशेंट, बीपी और लीवर की बीमारी से जूझ रहे पेशेंट में इसके साइट इफेक्ट ज्यादा दिखते हैं। ऐसे में इस दवा को देने के साथ ही इनसे जुड़ी जांचें भी जरूरी हैं।

इन चार सवालों से समझिए एचसीक्यू और कोरोना का कनेक्शन
सवाल-1 : क्या एचसीक्यू से कोरोना ठीक होता है?
जवाब: नहीं। अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि एचसीक्यू कोरोना का इलाज है। अलग-अलग अध्ययन बताते हैं कि यह दवा कोविड-19 वायरस के असर को कम कर सकती है, पर उसे खत्म नहीं कर सकती। अमेरिका, इंग्लैंड, स्पेन और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों में ट्रायल जारी है, विशेषज्ञ मानते हैं कि नतीजे पर पहुंचने से पहले बड़े स्तर पर क्लिनिकल ट्रायल्स की जरूरत है। एचसीक्यू की प्रभावशीलता को लेकर दो बड़े परीक्षण चल रहे हैं। पहला है डब्ल्यूएचओ का सॉलिडेरिटी ट्रायल, जिसका हिस्सा भारत भी है। वहीं दूसरा क्लोरोक्वीन एक्सेलरेटर ट्रायल है, जो वेलकम ट्रस्ट, यूके और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है।

सवाल- 2: क्या यह दवा सुरक्षित है?
जवाब: नहीं, इसके कुछ साइडफेक्ट्सभी देखे गए हैं। 5 प्रमुख साइड इफेक्ट- हार्ट ब्लॉक, घबराहट, चक्कर आना, उल्टी और डायरिया।


सवाल- 3: फिर इस दवा की इतनी मांग क्यों है?
जवाब: इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने उन हेल्थकेयर वर्कर्स को इसे देने की अनुशंसा की थी, जो कोरोना के मामलों को संभाल रहे हैं। साथ ही जिन लोगों में कोरोना के लक्षण तो नहीं हैं, लेकिन वे कोरोना मरीजों के संपर्क में आए हैं, तो डॉक्टर की सलाह से एचसीक्यू खा सकते हैं। ट्रम्प द्वारा दवा की मांग करने के बाद इसकी मांग बढ़ी है। हालांकि, अमेरिका में ही कोरोना में इसके कारगर होने को लेकर डॉक्टर, वैज्ञानिकों में मतभेद हैं। ट्रम्प ने इसके लिए जिस फ्रांसिसी रिसर्च का हवाला दिया है, उसे ही कई विशेषज्ञ बकवास मान रहे हैं।

सवाल- 4: तो क्या मुझे एचसीक्यू खानी चाहिए?
जवाब: यूरोप में कोरोना संक्रमितों की संख्या लाखों में है। यहां के यूरोपियन मेडिसिंस एजेंसी का कहना है कि कोरोना वायरस मरीजों को एचसीक्यू नहीं खानी चाहिए। साइड इफेक्ट्स को देखते हुए स्वीडन के अस्पतालों ने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया है। मेयो क्लीनिक के डॉ माइकल एकरमैन कहते हैं कि भले ही इस दवा को 90%आबादी के लिए सुरक्षित माना जाए ,लेकिन दिल के लिए यह जोखिमभरी हो सकती हैं। खासतौर पर उनके लिए जो किसी बीमारी से ग्रसित हैं या पहले ही बहुत सारी दवाएं खा रहे हैं। इसलिए ज्यादातर विशेषज्ञ यही सलाह देते हैं कि बिना डॉक्टरी सलाह के एचसीक्यू का सेवन न किया जाए।



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ब्रिटेन के डॉक्टर पॉल मॉक्सी और लेफ्टिनेंट कॉल मॉक्सी जुड़वां हैं। लंदन में एनएचएस नाइटिंगेल हॉस्पिटल बन रहा है। 4 हजार बेड के इस अस्पताल को बनाने में लगी टीम कॉल के नेतृत्व में काम कर रही है। सर्जन पॉल की भी ड्यूटी यहीं लगी है।

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