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Saturday, March 28, 2020

बसें-ट्रेनें बंद, रोजी-रोटी नहीं, पैदल गांव निकले सैकड़ों लोग, वायरस से पहले भूख न जिंदगी छीन ले

जयपुर.कोरोना, संक्रमण और मौत के काउंटडाउन के बीच जब लोग वायरस और अपने भविष्य को लेकर फिक्रमंद हैं तो राजस्थान की सरहदों से सैकड़ों मजदूर अपने गांव-शहरों की तरफ निकल पड़े हैं।किसी को 50 किमी चलना है तो किसी को 500, रोजी रोटी का संकट सिर पर है। नंगे पैर, भूखे प्यासे समूहों के समूह इस आस में चले जा रहे हैं कि वे किसी भी तरह अपने घर पहुंच जाएं। जयपुर में ऐसे ही कुछ मजदूरों से बात की तो कहते हैं - हम कोरोना के बारे में ज्यादा नहीं जानते।

हमें बस इतना पता है कि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है और यह जान ले सकती है। अगर मरना ही है तो अपनी धरती पर अपने परिवार के बीच मरना अच्छा है। कम से कम हमारी लाश को कंधा देना वाला तो कोई होगा। आखिरी बार अपने प्रियजनों का चेहरा तो देख पाएंगे। हमें पता है आने वाले समय में सारी फैक्ट्रियां सब कुछ बंद होगा। हमें काम और पैसा भी नहीं मिलेगा। कोरोना से पहले तो भूख मार देगी। पैदल चलने वाले छोटे बच्चों के चेहरे मायूस हैं, लगातार चलने पर पैरों में छाले पड़े हैं। भूख से हाल बेहाल है। इसके साथ ही एक और बेबसी है- लोगों की... उनकी मदद न कर पाने की बेबसी।

मदद के लिए बढ़ने वाला हर हाथ आज बेबस है। संक्रमण का डर हर दिमाग में जिंदा है। दूसरा बड़ा डर यह भी है कि इस कष्ट यात्रा के समाप्त होने से पहले कहीं जिंदगी न दम तोड़ दे। हवाई जहाज से भारतीयों को लाने वाली सरकार तो इनके पैरों में हवाई चप्पल भी नहीं दे पा रही। सिर पर पूरी गृहस्थी का बोझ उठाए कुछ मजदूरों ने कहा कि जब विदेश में फंसे लोगों को घरों तक पहुंचाने के लिए सरकार एयरलिफ्ट करा सकती है तो हमें भी अपने घर पहुंचाने के लिए कोई तो तरीका निकालिए।

ऐहतियात जरूरी है, इसलिए...सरकार ने साफ कहा कि मजदूरों को भेजने की कोई व्यवस्था नहीं करेंगे

लॉकडाउन के ऐलान के बाद हजारों दिहाड़ी मजदूरों के पैदल ही अपने गांव की ओर लौटने से राज्य सरकारों पर जबरदस्त दबाव बढ़ गया है। ऐसे में केंद्र ने सभी राज्यों को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए हैं कि लोगों को लॉकडाउन का उल्लंघन न करने दिया जाए, जो जहां हैं उसे वहीं रोका जाएगा। अन्य राज्यों में भेजने की कोई व्यवस्था नहीं की जाएगी। गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीव स्वरूप ने बताया कि इन्हें अब आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी और वे जहां हैं उन्हें वहीं रोका जाएगा इसके लिए सरकार उनके रुकने की और खाने-पीने की व्यवस्था करेगी।

मजबूरी में लापरवाहीपर इसे रोकना भी बहुत जरूरी है

गुजरात में फैक्ट्रियां बंद होने के बाद राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में प्रवासी आ रहे हैं। रेल और बस सेवा बंद होने के चलते अब यह लोग ट्रक और ट्रेलर से सफर करने लगे हैं। शुक्रवार को रायपुर थाना क्षेत्र में स्थित टोल नाके के पास होटल पर करीब ढाई सौ सवारियों से भरे 2 ट्राेले पहुंचे।

गुजरात से राजस्थान में अपने घरों को लौटने के लिए ट्रकाें में बैठकर यात्रा कर रहे लोग।

गुजरात से जैसे-तैसे आए... जांच के बाद क्वारेन्टाइन

58 साल के कमल 22 मार्च को सूरत से चले थे, शुक्रवार को घाट की गूणी टनल तक पहुंचे हैं। इन्हें आगरा जाना है। बीच में एकाध जगह किसी गाड़ी वाले ने कुछ दूर छोड़ दिया। सफर लंबा है और ये पैदल चले जा रहे हैं। कहते हैं कि लॉकडाउन से कंपनी बंद हुई तो मालिकों ने कहा अब हमारी जिम्मेदारी नहीं है।ऐसे कई काफिले शहर से गुजर रहे हैं, शहर लौट रहे हैं या शहर से जा रहे हैं। अपने शहर का जो जत्था रास्ते में मिलता है, उसके साथ हो लेते हैं। किसी के पास खाने को नहीं है। थक चुके हैं, मगर चल रहे हैं...


भूख, थकान, मगर ठिकाना नहीं, ऊपर से बरसात...उफ्!
सबसे बड़ी दिक्कत पेट भरने की है। दो दिन से बरसात हो रही है तो सिर ढकने की जगह भी नहीं मिलती। लोग देखकर आह भरते हैं, फिर महामारी के डर से ईश्वर/अल्लाह का नाम लेकर आगे बढ़ जाते हैं।

प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री की अपील बेअसर- काम बंद हुआ तो मालिकों का अता-पता नहीं, मकान मालिकों ने भी खदेड़ा
मुरैना के लिए निकले मुस्तैद, जगन ने बताया- काम बंद होते ही मालिकों ने हाथ खड़े कर दिए। कह दिया कि रोजाना बिठाकर खाना नहीं खिला सकते। कनकपुरा की सीमेंट कंपनी के मजदूर रविशंकर, लल्लन तिवारी को इलाहबाद जाना है। बोले- बंद का अता-पता नहीं, पैसे थोड़े से हैं। मकान मालियों ने कह दिया- खाली करो, अपने घर जाओ।


दर्द की जुबां जानने वाले मददगार बने- बंदर को केला, गाय को चारा, भूखे गरीबों को खाना खिला रहे...परदेसी को पैसे भी दे रहे
पलायन इंसानों का नहीं, जानवरों का भी हो रहा है। लोग घरों में हैं। गायों को चारा, बंदरों को केला, कुत्तों को रोटी खिलाने वाला नहीं। गरीब, दिहाड़ी मजदूर भूखे सो रहे हैं। ऐसे में कुछ लोग हैं जो उनके लिए भगवान बन गए हैं। पलायन करने वाले लोगों को भोजन करा रहे हैं, साथ ही आर्थिक मदद भी कर रहे हैं...लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।

रिपोर्ट : महेश शर्मा, शिवप्रकाश शर्मा, कन्हैया हरितवाल औरताराचंद गवारिया



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अब शहर से गांव की ओर पलायन- बेबस-बेघर-बेचैन।
रतनपुर बॉर्डर पर कतार में लगे ये लोग महाराष्ट्र-गुजरात से आए हैं, इनकी स्क्रीनिंग हो रही है।

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